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Sunday, January 30, 2011

प्रेम पर शास्त्रार्थ्य
धर्माचार्य,
आचार्य
सत्ताखोर, चोर, कसाई
दूकानदार आदि सब
मुझे
चुनौतिपूर्वक देते हैं
                    आमंत्रण
क़ि मै उनसे प्रेम पर करूं शास्त्रार्थ.
मै तिलमिला गया हूँ
क्रोध से
पतला हो गया है मेरा वीर्य
मै लगा हूँ हांपने
कांपने लगी हैं    मेरी इन्द्रियायें
जेसे क़ि
मैं बिना शास्त्रर्त्य किये ही
                 हो गया हूँ चित.
नित
प्रेम पर नये विवादों-व्याख्यानों   - नारों
आदि सबसे हो गयी है मुझे चिड
भिड मैं जाना चाहता हूँ
रुई के pahadaun से.
प्रेम के तथाकथित ठेकेदार बैठे हैं प्रेम पर कुंडली मर कर.
हे प्रभु इनसे मेरा उद्ध कर.
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