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Sunday, January 30, 2011

समारोह
उसके इर्द-गिर्द
खड़े  थे
               कुछ चुनिन्दा गुलाम.
**
उसने
बे-वज़ह  हंसी का
जो ओओ -----र  दार ठहाका लगाया.
( किसी की,
               कुछ समझ नहीं आया )
लेकिन,
 सब थे उसकी ख़ुशी में शामिल)
**
एक हंसा
    बत्तीसी खोल कर.
दूसरा दिखा सका
               
 सिर्फ दाँत भर.
तीसरा मुस्करायाभर.
**
वे कौन थे?
वे क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे दर्जे के गुलाम थे.
**
एक व्यक्ति
जो गुलाम नहीं था.
गंभीर / चुप
असहाय ----- यह सब देखता रहा.
वह कौन था?
                     मेरा देश था.
*************
  

Saturday, July 24, 2010




अर्ध्य

खड़ा  हूँ 
कमर तक पानी में. 

उठाता हूँ 
जितना निर्मल जल
अपने दो हाथों से --- अंजुरी भर 
उढेल देता हूँ वापस  सब नदी  में.

छू कर माथा 
हर बार 
खाली रह जाते हें सूर्य की
उपासना में  जुड़ते   दो हाथ.
नदी में
यह कौन बैठा   है लगाकर घात.

हाँ,
कब से दे रहा हूँ
अर्ध्य
मैं अपने सूर्य को.