Tuesday, August 3, 2010
कटु-भ्रम
मैं देखता हूँ.
कि आते हैं
चीटियों के तमाम झुण्ड;
ले जाते हैं
ज़मीन पर बिखरे हुए
घास के तिनकों को उठाकर
अपने अपने बिलों में.
ईश्वर जाने
क्या है इनके दिलों में ?
उनका
यह सिलसिला बराबर जारी है
संभवतः
बिलों में ज़मा की जा रही हैं लाठियां
किसी फसाद की तैयारी है.
यह क्या?
देख अपनी ही परछाई
डर जाता हूँ.
खींचता हुआ अपनी बांह
मै अपने घर जाता हूँ.
-----नारायण सिंह निर्दोष
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यह क्या?
ReplyDeleteदेख अपनी ही परछाई
डर जाता हूँ.
खींचता हुआ अपनी बांह
मै अपने घर जाता हूँ.
बहुत खूब .........
जो बिलों में नहीं है
ReplyDeleteवो सब दिलों में मौजूद है।
बलराम भाई हिन्दी की टिप्पणियों के रास्ते में आने वाली अंग्रेजी बाधा (वर्ड वेरीफिकेशन) को तुरंत हटवाइये। जानकारी चाहिए तो सूचित कीजिएगा।