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Sunday, January 30, 2011

प्रेम पर शास्त्रार्थ्य
धर्माचार्य,
आचार्य
सत्ताखोर, चोर, कसाई
दूकानदार आदि सब
मुझे
चुनौतिपूर्वक देते हैं
                    आमंत्रण
क़ि मै उनसे प्रेम पर करूं शास्त्रार्थ.
मै तिलमिला गया हूँ
क्रोध से
पतला हो गया है मेरा वीर्य
मै लगा हूँ हांपने
कांपने लगी हैं    मेरी इन्द्रियायें
जेसे क़ि
मैं बिना शास्त्रर्त्य किये ही
                 हो गया हूँ चित.
नित
प्रेम पर नये विवादों-व्याख्यानों   - नारों
आदि सबसे हो गयी है मुझे चिड
भिड मैं जाना चाहता हूँ
रुई के pahadaun से.
प्रेम के तथाकथित ठेकेदार बैठे हैं प्रेम पर कुंडली मर कर.
हे प्रभु इनसे मेरा उद्ध कर.
******** 

v

विरोध
अचानक
मुझे क्या सूझता है
क़ि मैं
तलाशने लगता हूँ
घर के भीतर एक हथियार.

मसलन,
तेज़ करने लगता हूँ
            साग कटाने का चाकू.

दीवार से
रगड़ता   हुआ अपनी पीठ   
दौड़ता  हूँ मै
खिड़की-खिड़की /  द्वारे-द्वारे
दिन-रात
 चाकू लिए हाथ.

यद्धपि
जानते हुए भी
 क़ि चाकू
नहीं कर सकेगा बाल-बांका भर
स्टेनगन से मेरी सिम्त आती हुई

दनदनाती  गोली का
फिर भी
 मै कर राह हूँ  अपना   विरोध    दर्ज.
हाँ,  मुझे लग गया है
                       बढ-बढाने का मर्ज़.
                                                  ************
कश्मीर
निहारती है आईने में
एक चिड़ी.
आईने में             खूब चौंच मरती है.
वह करती है  पुरजोर
आक्रमण ,     अपने ही बिम्ब पर.

फलस्वरूप / लहूलुहान हो गयी है
छिड़ी.
उसकी इस अकलमंदी पर
हँसता है --------आइना
आखिर,
वह   कब तक करती रहेगी
खुदको --------यूँ  फ़ना?
*********
समारोह
उसके इर्द-गिर्द
खड़े  थे
               कुछ चुनिन्दा गुलाम.
**
उसने
बे-वज़ह  हंसी का
जो ओओ -----र  दार ठहाका लगाया.
( किसी की,
               कुछ समझ नहीं आया )
लेकिन,
 सब थे उसकी ख़ुशी में शामिल)
**
एक हंसा
    बत्तीसी खोल कर.
दूसरा दिखा सका
               
 सिर्फ दाँत भर.
तीसरा मुस्करायाभर.
**
वे कौन थे?
वे क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे दर्जे के गुलाम थे.
**
एक व्यक्ति
जो गुलाम नहीं था.
गंभीर / चुप
असहाय ----- यह सब देखता रहा.
वह कौन था?
                     मेरा देश था.
*************
  

चेहरा

चेहरा
 एक नकली चेहरा  लगा है
तुम्हारे
कठोर एवं खुरदरे चेहरे पर
जिस पर
 मासूमियत है- आकर्षण भी
और चढ़ा है
आदमियत  का लेप
जिसे धोना -पोंछना 
                       कितना मुश्किल है. !


इतना नुकीला है / तुम्हारा चेहरा
क़ि वह,
आसानी से समां सकता है
                        मेरे भावुक चहरे में.
तुम जब चाहो
तब अलग कर लोगे अपना चेहरा
मेरे चेहरे से;
फलस्वरूप,
बेदौल  - लहूलुहान हो जायेगा
मेरे चेहरा.
कोई फर्क नहीं पड़ता 
     तुम्हें
क्यूंकि  ,
तुम्हारा असली चेहरा
       तुम्हारे पास जो रह जयेगा.

Tuesday, August 3, 2010

कटु-भ्रम



















मैं देखता हूँ.
      कि आते हैं
          चीटियों के तमाम झुण्ड;
ले जाते हैं
ज़मीन पर बिखरे हुए
घास के तिनकों को उठाकर 
अपने अपने बिलों में. 
ईश्वर जाने 
             क्या है इनके दिलों में ?

उनका
यह सिलसिला बराबर जारी है
संभवतः
बिलों में ज़मा की जा रही हैं  लाठियां
किसी       फसाद की तैयारी है.

यह क्या?
देख अपनी ही परछाई
                        डर  जाता हूँ.
खींचता हुआ अपनी बांह
     मै  अपने घर जाता हूँ.

                                  -----नारायण सिंह निर्दोष

Monday, August 2, 2010








मैं बेशरम  का पेड़ हूँ

खूब पहिचाना मुझे 
मैं बेशरम का पेड़ हूँ
जी हाँ
     मैं बेशरम का पेड़ हूँ. 

काटकर 
     तोड़कर
        मोड़कर 
तुम चले गए मुझे 
नाज़ुक हालत में छोड़ कर 
मैं आड़ा  तिरछा  पड़ा रहा
बंज़र ज़मीन पर
गाड़ा अँधेरा ओढ़  कर
मुझे
 मरहम की ज़रुरत नहीं
खुद
मरहम का ढ़ेर हूँ. 
खूब पहिचाना मुझे 
        मैं  बेशरम का पेड़ हूँ.


रोज़ कली खिले  
भ्रमर पराग चूसे
    मुझे क्या ?
इसे लोग मेरी भूल तो कहेंगे
मेरे दुखते छितरते जख्मों को
कम से कम
बेशरम का फूल तो कहेंगे
मुझे
हमदम  की ज़रुरत नहीं
खुद ही
दम  का पेड़  हूँ.
खूब पहिचना मुझे
मैं बेशरम का पेड़ हूँ.

चमक हो या सादगी हो
चहरे पर
ताज़गी हो / दर्द हो / टीस हो / कसक हो
कहर हो;
रेगिस्तान हो / शमशान हो / चमन हो / वीरान हो
गाँव हो या शहर हो
मुझे घर का मलाल नहीं
मैं जवान हूँ / वृद्ध हूँ
या अधेड़  हूँ 
मैं बेशरम का पेड़ हूँ.


जंगल की सूची में 
मेरा नाम 
है या नहीं 
यह मुझे नहीं मालूम 
यदि होगा भी तो बहुत नीचे
जहाँ प्रष्ठों के हांसिये
दिखते हैं  
आँखें तरेरे     दांत भींचे
लोग कुछ भी कहैं
मैं अपने
ईमान-ओ - धरम का पेड़ हूँ.
खूब पहिचाना मुझे
मैं बेशरम का पेड़ हूँ.

मेरे जख्मीं तनों  से
 बांधा गया है/ मरखने बैलों को
मैंने तहे-दिल से सजाया है
उपेक्षित पार्कों
और सुनसान गैलों* को

फिर भी तो लोग कहते हैं
कि मैं
 अहम् का पेड़ हूँ.
जी नहीं
मैं बेशरम का पेड़ हूँ.

खूब पहिचाना  मुझे
मैं बेशरम का पेड़ हूँ.

                                                                (* गैलों------- गलियों  / रास्तों  )

-- नारायण सिंह निर्दोष